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कोरोना इफ़ेक्ट-2 जब हाथ नही मिले तो दिल कैसे मिलेगा ?



कोरोना इफ़ेक्ट-2  जब हाथ नही मिले तो दिल कैसे मिलेगा ?


“दुनिया की लगभग सभी सभ्यताओं और समाजों में एक बात  हमेशा से कॉमन थी की “अतिथि की कोई शर्त नही होती. शर्ते आतिथेय तय करेगा.”


लेकिन यहाँ तो मामला ही पूरा उल्टा-सुल्टा हो गया है. सारी की सारी शर्तें कोरोना अंकल तय कर दिए है, बाकियों को तो बस चुपचाप उसपे अमल करना है. और अगर गलती हुई तो….. ? (गलती को गलती माना जायेगा छोटी हो या बड़ी.)


कोरोना इफ़ेक्ट कथा श्रृंखला के इस भाग में ….


समय 12 बजे दिन, स्थान - सिविल लाइन चौराहा (गुप्ता जी की चाय-पान-सिगरेट शॉप) - मुकुल और उसके दोस्तों और उनके जैसे आस पास की  ऑफिस में काम करने वाले सैकड़ो की दिनभर कि एक अस्थाई दुनिया.


वैसे तो मुकुल वेरी कूल बंदा माना जाता है लेकिन आज….

क्या बात है हीरो ? विपिन ने पूछा?

कुछ नही यार साला सब के सब चूतिया है ? पढ़े लिखे गोबर है साले सब. 

विपिन को मुकुल के बेहद ख़राब मूड का अंदाजा हो गया था, माहौल को हल्का करने के लिए कहा -चल चाय पीते है - इतना सुनते ही तो फट पड़ा मुकुल… अबे तू भी वैसा ही है जाहिल का जाहिल 

अब तो विपिन सन्न कि साला ये हो क्या रहा है ?

मुकुल अपनी धुन में चालू है-- 

अरे यार तुम लोग पढ़े लिखे हो, इतना बड़ा संकट है, चारो तरफ कोहराम मचा है, तुमको इतना नही पता ? किस दुनिया में रहते हो … चीन.. इटली.. अमेरिका.. रूस.. संक्रमण.. मौतें.. बीमारी……. फैलने के तरीके… बचाव के तरीके……..


विपिन बस मुकुल का मुह ताके जा रहा है. 

हाँ ठीक है कि संकट है, महामारी है तो क्या साथ उठना-बैठना बंद हो जायेगा ? जीना तो नही छोड़ दोगे ना.

मुकुल को सँभालने के लिए उसकी पीठ पर हाथ रखा विपिन ने और कुछ बोल पता इससे पहले एक फुल स्पीड झापड़ विपिन के गाल पर पड़ चुका था.

 

अब सब कुछ खामोश था.

मुकुल के दिमाग में उबलता लावा आसुओं कि शक्ल में भरभरा के बह चला.. 

कुछ डर था कोरोना का…

कुछ गुस्सा था लोंगो कि लापरवाहियों पर…

कुछ अफ़सोस था अपने ख़राब व्यवहार पर…

कुछ ग्लानी थी हाथ उठा देने पर…


विपिन तो बस अवाक् था...

अब सब कुछ खामोश था.

 

……………………………


इस खामोश सहयात्री ने ये क्या कर दिया है हर तरफ ?

वो आया हमारी जिंदगी में कोई बात नही, हमने तो स्वागत ही किया था.

नाम भी बड़े प्यार से “नोवल कोरोना- कोविड-19” रखा. बिल्कुल नए ज़माने का, विज्ञान-बौद्धिकता-टेक्नोलॉजी की मिली जुली चासनी में पगा हुआ. इतने पर भी इतनी बेरहमी…


पहले तो आना नही चाहिए था, आ गये तो शांति से रहते, तुमसे पहले भी तो अतिथि आये थे - इबोला, चेचक, प्लेग, एड्स … और भी न जाने कौन-कौन.  क्या हमने किसी को भी भगाया था क्या. सबको सही तरीके से सम्मान सहित संभालकर रखा ही न .


ये क्या बात हुई कि तुम आये हो तो हम 

हाथ मिलाना छोड़ दें-- अरे यार सैकड़ों सालो से हमने ये संस्कृति विकसित कि थी. एक हाथ मिलाना ही तो था जिसकी वजह से अलग- अनजान देश-दुनिया के लोग भी आपस में दोस्त बन जाते थे. हाथ मिलाने से ही दुनिया में तरक्की के इतने रास्ते खुले, हर मुलाकात कि शुरुआत हम हाथ मिलाकर करते तो समापन पर भी आखिरी क्षण हाथ ही मिलता था. 

अगर हम हाथ न मिला रहे होते तो सोचकर देखो तुम्हारा खुद का भी तो अस्तित्व न होता. पड़े रहते किसी चमगादड़ के पेट में या  बंद रहते किसी लैब के जार में.


हम नही जानते कि तुम इतने अहसान फरामोश कैसे हो ? क्या तुम्हारे यहाँ भी पॉलिटिक्स…..


अब जब हम हाथ नही मिला सकते तो साथ कैसे बैठेंगे ?

अब जब हम हाथ नही मिला सकते तो गले कैसे मिलेंगे?

क्या हम भूल जायेंगे कि - जीवन कि प्रत्येक ख़ुशी में हम अपनों से गले मिलते थे और हर दुःख में किसी कंधे का सहारा लेकर थोडा रो लेते थे. 

तुम्हारी वजह से-

हम अपनों से भी मिल नही पा रहे है.

बीमार परिजनों कि सेवा नही कर पा रहे है.

सारे संगी-साथी ………………….

और तो और तुम्हारी क्रूरतम उपलब्धि यह है कि हम अपनों कि लाशो को छूकर ठीक से रो भी नही पा रहे.


तुमने हमें कितना  अकेला कर दिया……….?  


“क्या अब हम हमेशा अकेले ही रहेंगे ?”


कम से कम तुम्हे तो ऐसा ही लग रहा होगा. अपनी जीत पर मुस्कुरा भी रहे होगे. कोई बात नही …. खुश हो लो .. नाच… लो… जितना इठलाना हो इठला लो….

मगर एक बात याद रखना…  “नोवल कोरोना- कोविड-19”  

हमारी निगाह में तुम एक वायरस हो , और जान लो हमारी दुनिया में वायरस का मतलब एक गन्दी चीज होता है.


आज तुम्हारा वक़्त है…  भरोसा रखो कल तुम्हारी औकात केवल एक वायरस कि ही रहेगी.


तुम जैसे न जाने कितनो से लड़कर हमने ये दुनिया बनाई है. तो तुम्हारी क्या बिसात ?

हम फिर लौटेंगे…..

फिर से एक बेहतर दुनिया बनायेंगे…


फिर हाथ भी मिलायेंगे…. और गले भी मिलेंगे… दिल भी मिलायेंगे...

फिर से मुस्कुराएंगे…... 





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