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बलात्कार विवाह







"तुम्हें नहीं लगता , बलात्कार के मुद्दे पर हमारा समाज थोड़ा मुलायम है ?" सुनील ने चिन्तामणि से पूछा था।
"थोड़ा नहीं , बहुत मुलायम है।" चिन्तामणि ने जवाब दिया।
"मगर ऐसा है क्यों ? सभी जानते हैं कि यह घिनौना कृत्य है , निहायत पतित !"
"ऐसा नहीं है , रेप कभी भी इतना बुरा नहीं समझा गया जितना आजकल समझा जाता है। और तो और , हमारे भारत में तो बलात्कार एक प्रकार का विवाह रहा है और बलात्कारी से लड़की की बाद में शादी करा देना आम बात।" चिन्तामणि ने शान्त स्वर में कहा।
"क्या बकवास कर रहे हो ? बलात्कार को विवाह कौन कह सकता है ? खाप पंचायत जैसी बातें करने लगे तुम तो।" सुनील मानो कुर्सी से कूदने को हो गया।
"बैठो मुन्ना ! उत्तेजित हुए बिना पूरी बात सुन तो लो। 'बलात्कार' का मतलब है बलात् + कार मतलब कि ज़बरदस्ती किया गया कर्म। 'रेप' का अर्थ है जबरन उठा ले जाना। प्राचीन काल में लड़की को ज़बरदस्ती उठाना भर ही बलात्कार मान लिया जाता था। फिर परिभाषा बदली और किडनैपिंग के साथ उसमें सम्भोग जुड़ गया। फिर काफी दिनों तक सम्भोग के साथ योनि में वीर्यपात का होना रेप की परिभाषा के लिए अनिवार्य था। अश्वेत मर्द गोरी औरत के साथ सहमति से भी सेक्स कर ले तो भी काफी समय तक उसे रेप माना जाता रहा। बड़े पेंचों के बाद कहानी यहाँ तक बढ़ी है। परिभाषा फैलते-फैलते धीरे-धीरे आज वाली डेफिनिशन तक पहुँची है।"
"भारत के बारे में बताओ ? रेप शादी थोड़े ही है।" सुनील अब भी उत्तेजित था।
"मनु स्मृति आठ तरह के विवाह बताती है - ब्राह्म-विवाह , देव-विवाह , आर्ष-विवाह , प्रजापत्य-विवाह , आसुर-विवाह , गान्धर्व-विवाह , राक्षस-विवाह और पैशाच-विवाह। इनमें से लड़की के घरवालों को पैसे देकर लड़की खरीदना आसुर-विवाह है , उसके घरवालों को मारकर उसे उठा लेना राक्षस-विवाह और उसे नशीली वस्तु खिला-पिलाकर उसके साथ सेक्स करना पैशाच-विवाह। लेकिन ये तीनों विवाह ही माने गये हैं। मतलब यह कि किसी लड़की के साथ ऐसे कोई दुर्घटना घट जाये तो उसकी शादी करदो उसी बलात्कारी के साथ ! छुट्टी !"
सुनील का चेहरा फक था।
"और यह न समझना कि बाकी धर्म बेहतर हैं। यही हाल ईसाईयों का है और मुसलमानों का भी। रोम-कुस्तुन्तुनिया-समरकन्द-बुखारा की मण्डियों में इन समाजों में भी औरतें नंगी बेची जाती थीं। अब इसके बाद क्या कहा जाए ?"
"मगर लोग दलील देंगे कि धार्मिक किताबों में ऐसा कुछ नहीं लिखा ? और वह सलूक तो ग़ुलाम औरतों के साथ होता था , केवल। " सुनील बोला।
"अच्छा सुनील , मेरी मम्मी मम्मी , और कामवाली कान्ताबाई रण्डी ? और सभी धर्मों के किये की बात करो , लिखे की नहीं। लिखा तो बहुत कुछ है। जो करते हो , बात उसपर होगी। बकैती न करो। और एक बात ! पॉर्न देखते हो तुम ? उसमें लड़की के हाथ-पैर बाँध कर उसके साथ सैडिस्टिक सम्भोग-क्रिया बलात्कार का नाट्य-रूपान्तरण ही तो है। और क्या है ? सुनील भाई ! असल बात है औरत के जिस्म का ऑब्जेक्टिफिकेशन। वह हर धर्म में रहा है , हर समाज में रहा है। और आज भी जारी है।"
"तब इस मानसिकता को दुरुस्त करने का उपाय क्या है ?"
"उपाय जो हो , महिलाएँ ही करेंगी। उन्हें ही करना पडेगा। उनको इस बीमारी के ट्रीटमेंट में शामिल होना पडेगा। नहीं तो पुरुष तो केवल दबी ज़बान में इसकी निन्दा भर करता रहेगा, हमेशा। बस।"


-- डॉ. स्कन्द शुक्ल 

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