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चाँद पूरा सफ़ेद क्यों नहीं है पापा ?




चाँद पूरा सफ़ेद क्यों नहीं है पापा ? 

मुन्नी को इक्लेयर्स पसन्द है। उसे उसको अपने नन्हें दाँतों से पीस कर खाना पसन्द है। उसे उसके कड़े अण्डाकार आवरण के भीतर से बाहर को रिसती मीठी तरल चॉकलेट का जीभ पर स्वाद पसन्द है।
यह सब करते हुए वह चाँद-तले मुझसे सवाल करती है। सवाल चाँद पर है , मगर उसके उजाले पर नहीं। उजाले की बातें करने के लिए तो बहुत सारे बच्चे और बड़े हैं। मुन्नी का ध्यान उसके दाग़ों पर अटका हुआ है। उसे मामा की उजली देह पर कालिख़ की चिन्ता सताती है।
"
चाँद पूरा सफ़ेद क्यों नहीं है पापा ? उसकी रोशनी पर ये काले निशान क्यों ?" मुन्नी का मासूम सवाल मेरे मौन के वायुमण्डल को किसी उल्का-सा चीरता आता है।
"
क्योंकि चन्दा मामा को मार पड़ी है।"
"
उन्हें किसने मारा पापा ? इतने सुन्दर मामा को भी कोई मारता है ?"
"
आसमान में अगर बिना रजाई घूमोगे , तो मार पड़ेगी मुन्नी।"
"
तो कैसे घूमना चाहिए आसमान में ?"
"
रजाई ओढ़कर। लुकछिप कर।"
"
कैसी रजाई ?"
"
वायुमण्डल की रजाई। जितना घना वायुमण्डल , उतना उल्काओं की मार से सुरक्षा।"
"
उल्काएँ कौन चलाता है मामा पर ! उनसे किसकी दुश्मनी ?"
"
आसमान में ढेर सारे ढेले चला करते हैं मुन्नी। अन्तरिक्ष पथराव के बीच में अपने रास्ते चलने जैसा है। मार खाना है , चलते जाना है।जहाँ तक हो सके , डगमग नहीं होना।"
"
तो चन्दा मामा को मार से काले दाग़ कैसे पड़े ?"
"
चन्दा मामा बने करोड़ों साल पहले जब हमारी धरती माता से एक पिण्ड टकराया। थिया नाम था उसका। टक्कर में थिया तो नष्ट हो गया और पृथ्वी को भी चोट पहुँची।"
"
फिर ?"
"
फिर उसी घटना ने पृथ्वी को सँभलने का मौक़ा दिया और चकनाचूर थिया का चूरा मिलकर बना हमारा चन्द्रमा। लेकिन तब वह एकदम गरम था , खौलता हुआ तरल पिण्ड।"
"
फिर वह ठण्डा हुआ धीरे-धीरे ?"
"
हाँ , लाखों सालों में हुआ। पहले सतह ठण्डी हुई। वह जम कर ठोस हो गयी। मगर भीतर दहकता तरल जस-का-तस बना रहा।"
"
फिर ?"
"
आसमान से पथराव खाते हुए उसने अपनी दीदी के चक्कर लगाना जारी रखा।"
"
फिर ?"
"
फिर एक बार कुछ बड़ी चट्टानें उससे आ टकरायीं। और उसके भीतर का तरल दहकता हुआ बाहर ठण्डी जमी सतह पर फूट पड़ा।"
"
वही भीतर से बाहर आया तरल यह काला रंग है ?"
"
बिलकुल। भीतर से बाहर निकला तरल सतह पर जम गया। इस द्रव में लोहा अधिक है , इसलिए यह प्रकाश सोख लेता है और हम तक कम पहुँचाता है। जानती हो न कि चन्द्रमा चमकता सूर्य के प्रकाश से है।"
"
तो ये काले धब्बे चन्दा मामा को पड़ी मार से कारण हैं। समझ गयी। बेचारे मामा।"
"
हाँ , लेकिन यह भी सच है कि ये काले दाग़ हमारी तरफ़ ही चन्दा मामा दिखाते हैं। दूसरी ओर इनकी पीठ पर काले निशान न के बराबर हैं।"
"
अरे पर ऐसा क्यों ?"
"
यह विज्ञान के लिए अभी रहस्य है।"
"
विज्ञान में भी रहस्य होते हैं , पापा।"
"
विज्ञान में ही रहस्य होते हैं , मुन्नी। बाक़ी हर जगह तो अन्धविश्वास होते हैं।"
"
यह रहस्य कब खुलेगा कि मामा के चेहरे पर इतने पत्थरों के दाग़ और पीठ पर लगभग एक भी नहीं।" मुन्नी दूर काले आसमान में कहीं खो जाती है।
"
तुम्हारे जैसे बच्चे बड़े होकर खोजेंगे। और अपने बच्चों को बताएँगे।"
"
और आप ?"
"
हम-जैसों का ज्ञान पुराना और पिछला होता जाएगा। अधूरा भी। हमें पुराना-पिछला-अधूरा सिद्ध करने में ही तुम्हारी बढ़त है मुन्नी।"
"
पर मैं आपको नहीं पिछाड़ना चाहती।"
"
पिछाड़ोगी नहीं तो अपने से आगे वालों से कैसे पिछड़ोगी , पागल ? पिछड़ोगी नहीं , तो उन्हें कैसे पिछाड़ने का मौक़ा दोगी ? अतीत का पिछड़ना और पीछे चले जाना ज़रूरी है सुन्दर भविष्य के लिए।"
"
मुझे चाँद की मलहम-पट्टी करनी है।"
"
उसके लिए तुम्हें वहाँ जाना होगा , मुझे यहाँ पीछे छोड़कर।विज्ञान की एंब्यूलेंस में बैठकर।"

-- डॉ. स्कन्द शुक्ल 

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