आम भारतीय मर्द , लड़की से 'डील' करने के तौर-तरीके फिल्मों से सीखता है। जब हम बच्चे थे , तब जालीदार बनियान पहने अमिताभ बच्चन , तवायफ रेखा का हाथ सरेआम पकड़ लेते थे और कहा करते थे कि 'जब तू बुड्ढी हो जायेगी ' , तब भी मैं आउँगा। अमिताभ की भावनाएँ सच्ची थीं मगर लड़कों ने भावनाएँ नहीं , तरीका पकड़ा।
जब हम जवान हुए तो हमने साथ ट्रेन में सफर करते शाहरुख को काजोल की ब्रा उधेड़ते देखा। पब्लिक जिसमें नर और मादा दोनों थे , हँस रही थी। काजोल का क्रोध उनके लिए बनावटी था और शाहरुख की हरकत , शरारत।
घर पर हम बच्चों को बताया जाता था कि राम ने जो किया वह करो ; कृष्ण ने जो किया , वह सुनो। मगर राम डल लगते थे , कृष्ण अट्रैक्टिव। बचपन और जवानी दोनों कृष्ण के दीवाने हैं , एक मक्खन के कारण तो दूसरा गोपियों के कारण। हमें कृष्ण का अनुकरण करने से रोका गया तो हमने श्रृंगार-रस के नायक फिल्मों में तलाश लिये। शाहरुख-सलमान-अक्षय-सैफ-आमिर , इनके लिए तो माँ-बाप हमें रोक नहीं सकते थे।
फिर हम आज का ज़माना देखते हैं , जहाँ नायक-नायिका का हाथ नहीं पकड़ता और न उसकी ब्रा उधेड़ता है। श्रृंगार-प्रसंग में किये जाने वाले ये प्रदर्शन अब बासी हो गये हैं। अब नायक वन-नाइट-स्टैंड की इच्छा जताता है और नायिका सहर्ष तैयार हो जाती है। रात बीतती है और बात भी बीत जाती है।
समस्या तब शुरू होती है जब हम इन नायक-प्रसंगों को अपनी ज़िन्दगी में अप्लाई कैसे करें , यह नहीं जान पाते। अधेड़ अमिताभ बच्चनी नायक , लड़की का मोहल्ले में हाथ पकड़ रहे हैं , मच्योर यूथ शाहरुखी शख्सियत वाले ब्रा उधेड़ रहे हैं और नयी-नयी जवानी पाये रणवीर कपूरी चिलगोज़े बिना कॉन्डोम का सही इस्तेमाल जाने , 'चढ़ने के लिए' लड़की ढूँढ़ रहे हैं।
जब हम जवान हुए तो हमने साथ ट्रेन में सफर करते शाहरुख को काजोल की ब्रा उधेड़ते देखा। पब्लिक जिसमें नर और मादा दोनों थे , हँस रही थी। काजोल का क्रोध उनके लिए बनावटी था और शाहरुख की हरकत , शरारत।
घर पर हम बच्चों को बताया जाता था कि राम ने जो किया वह करो ; कृष्ण ने जो किया , वह सुनो। मगर राम डल लगते थे , कृष्ण अट्रैक्टिव। बचपन और जवानी दोनों कृष्ण के दीवाने हैं , एक मक्खन के कारण तो दूसरा गोपियों के कारण। हमें कृष्ण का अनुकरण करने से रोका गया तो हमने श्रृंगार-रस के नायक फिल्मों में तलाश लिये। शाहरुख-सलमान-अक्षय-सैफ-आमिर , इनके लिए तो माँ-बाप हमें रोक नहीं सकते थे।
फिर हम आज का ज़माना देखते हैं , जहाँ नायक-नायिका का हाथ नहीं पकड़ता और न उसकी ब्रा उधेड़ता है। श्रृंगार-प्रसंग में किये जाने वाले ये प्रदर्शन अब बासी हो गये हैं। अब नायक वन-नाइट-स्टैंड की इच्छा जताता है और नायिका सहर्ष तैयार हो जाती है। रात बीतती है और बात भी बीत जाती है।
समस्या तब शुरू होती है जब हम इन नायक-प्रसंगों को अपनी ज़िन्दगी में अप्लाई कैसे करें , यह नहीं जान पाते। अधेड़ अमिताभ बच्चनी नायक , लड़की का मोहल्ले में हाथ पकड़ रहे हैं , मच्योर यूथ शाहरुखी शख्सियत वाले ब्रा उधेड़ रहे हैं और नयी-नयी जवानी पाये रणवीर कपूरी चिलगोज़े बिना कॉन्डोम का सही इस्तेमाल जाने , 'चढ़ने के लिए' लड़की ढूँढ़ रहे हैं।
थोड़े-थोड़े बलात्कारी तो हम सब हैं। मम्मी-डैडी ने तो परायी लड़की को 'हैंडल' करना सिखाया नहीं , बहन की चोटी खींचना और बात थी। राम ने धनुष तोड़ कर शादी कर ली और कृष्ण ने जो किया वह हमें करने के लिए मना कर दिया गया। बॉलीवुड से हमने अपने तरीके से लुकछिप कर नारी-सम्बन्धी-लोकव्यवहार सीखा है। इसलिए औरत पर हम बल दिखाते नहीं हैं , बल दिख जाता है। बलात्कार हम करते नहीं हैं , बलात्कार तो हो जाता है।
-- डॉ. स्कन्द शुक्ल
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