"ढोल गँवार शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।"
"उँगली उठाने वाले को देखना चाहिए कि रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में यह वाक्य , किस परिपेक्ष्य में कहा गया है" ; सुनील मुझसे कह रहा था।
"यही तो मैं तुमसे कह रहा हूँ , कि कहने वाले 'समुद्र' का परिपेक्ष्य मत देखो , कवि तुलसीदास का देखो। कोई कितना भी महान व्यक्ति क्यों न हो , अपने काल के हिसाब से ही सोचता है। उसके बहुत आगे का , वह सोच ही नहीं सकता। गोस्वामी तुलसीदासजी से तुम आज के मूल्यों की उम्मीद करते हो , यह तुम्हारा बचपना है।"
"उँगली उठाने वाले को देखना चाहिए कि रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में यह वाक्य , किस परिपेक्ष्य में कहा गया है" ; सुनील मुझसे कह रहा था।
"यही तो मैं तुमसे कह रहा हूँ , कि कहने वाले 'समुद्र' का परिपेक्ष्य मत देखो , कवि तुलसीदास का देखो। कोई कितना भी महान व्यक्ति क्यों न हो , अपने काल के हिसाब से ही सोचता है। उसके बहुत आगे का , वह सोच ही नहीं सकता। गोस्वामी तुलसीदासजी से तुम आज के मूल्यों की उम्मीद करते हो , यह तुम्हारा बचपना है।"
सुनील मुझसे सपोर्ट में और दलील चाह रहा था।
"अरस्तू को जानते हो तुम , प्राचीन यूनानी फिलॉसफर थे ? उन्होंने कहा था कि औरतें मर्दों से इन्फीरियर हैं क्योंकि वे शुक्राणु नहीं बना सकतीं जिसमें एक पूरा जीव होता है। कहने का मतलब वे समझते थे कि बच्चे का पूरा शरीर बनाने के लिए शुक्राणु पर्याप्त हैं , सेक्स के बाद औरत तो केवल उसका भरण-पोषण करती है। इसलिए वह अपूर्ण है। अब तुम उनसे आज के जेनेटिक्स के ज्ञान की उम्मीद करो तो इससे बड़ी बेवकूफी क्या होगी ? उन्हें थोड़े ही पता था कि औरत और मर्द के आधे-आधे क्रोमोसोमों को मिलाकर बच्चे का शरीर बनता है।"
"सुनकर बड़ा अजीब नहीं लगता कि अरस्तू जैसा आदमी ऐसा सोचता था ?" सुनील ने अचम्भे के साथ कहा।
"नहीं लगना चाहिए। वह उस ज़माने की सोच थी। बुद्धिजीवी / विचारक अपने ज़माने से आगे हो सकता है लेकिन बहुत आगे नहीं। यह उसकी कालगत मजबूरी है। अरस्तू तो पूरी ज़िन्दगी यह भी मानते थे कि औरतों के आदमियों से कम दाँत होते हैं।"
सुनील हँस पड़ा।
"आधुनिक मूल्य-चेतना के लिए सर्टिफिकेट लेने तुलसीदास और अरस्तू के पास न जाओ , वे उस ज़माने के थे। उन्होंने बहुत आगे तक का सोचा होगा मगर आज की दुनिया उनकी सोच से भी बहुत आगे बढ़ चुकी है। जो चीज़ आउटडेटेड है , वह आउटडेटेड है। एक दिन हम-तुम भी आउटडेटेड हो जाएँगे।"
"अरस्तू को जानते हो तुम , प्राचीन यूनानी फिलॉसफर थे ? उन्होंने कहा था कि औरतें मर्दों से इन्फीरियर हैं क्योंकि वे शुक्राणु नहीं बना सकतीं जिसमें एक पूरा जीव होता है। कहने का मतलब वे समझते थे कि बच्चे का पूरा शरीर बनाने के लिए शुक्राणु पर्याप्त हैं , सेक्स के बाद औरत तो केवल उसका भरण-पोषण करती है। इसलिए वह अपूर्ण है। अब तुम उनसे आज के जेनेटिक्स के ज्ञान की उम्मीद करो तो इससे बड़ी बेवकूफी क्या होगी ? उन्हें थोड़े ही पता था कि औरत और मर्द के आधे-आधे क्रोमोसोमों को मिलाकर बच्चे का शरीर बनता है।"
"सुनकर बड़ा अजीब नहीं लगता कि अरस्तू जैसा आदमी ऐसा सोचता था ?" सुनील ने अचम्भे के साथ कहा।
"नहीं लगना चाहिए। वह उस ज़माने की सोच थी। बुद्धिजीवी / विचारक अपने ज़माने से आगे हो सकता है लेकिन बहुत आगे नहीं। यह उसकी कालगत मजबूरी है। अरस्तू तो पूरी ज़िन्दगी यह भी मानते थे कि औरतों के आदमियों से कम दाँत होते हैं।"
सुनील हँस पड़ा।
"आधुनिक मूल्य-चेतना के लिए सर्टिफिकेट लेने तुलसीदास और अरस्तू के पास न जाओ , वे उस ज़माने के थे। उन्होंने बहुत आगे तक का सोचा होगा मगर आज की दुनिया उनकी सोच से भी बहुत आगे बढ़ चुकी है। जो चीज़ आउटडेटेड है , वह आउटडेटेड है। एक दिन हम-तुम भी आउटडेटेड हो जाएँगे।"
-- डॉ. स्कन्द शुक्ल
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