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स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियन्त्रण में



एक लड़का बाइक से कॉलेज जा रहा था , जैसे रोज़ जाता था। दूसरा , नुक्कड़ पर अण्डे की दुकान लगाये बैठा था , जैसे रोज़ बैठता था।
सड़क पर उस दिन बजरी फैली हुई थी और बाइकवाला कहीं खोया हुआ था। अंडेवाले का ठेला भी उस दिन थोड़ा सड़क के बीच लगा हुआ था , अनजाने में।
टक्कर हुई। अबे-तबे हुई , गाली-गलौज हुई , हाथापायी हुई।
एक घंटे बाद बाइकवाला संजय और अंडेवाला इक़बाल बन चुके थे।
दो घंटे बाद वहाँ भीड़ के दो जमावड़े थे - अल्लाह हु अकबर ! हर हर महादेव !
चार घंटे बाद वहाँ फिर शान्ति थी - सरकारी शान्ति , कर्फ्यू द्वारा थोपी हुई।
अगले दिन मीडिया में 'दो समुदायों' के बीच स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियन्त्रण में बतायी जाती थी'।
सवाल सिर्फ दो उठते हैं ;
१) नालायक संजय छाती पर तख्ती लगाकर यह चिल्लाता हुआ कॉलेज क्यों नहीं जाता था कि कोई इक़बाल अगर सामने हो तो हट जाए वरना स्थिति तनावपूर्ण हो जायेगी ? और बेवक़ूफ़ इक़बाल ने अपनी दुकान पर यह वाक्य क्यों नहीं लिखवाया था कि उसपर किसी संजय की बाइक से टक्कर , कौम के लिए ख़तरा मानी जायेगी ?
२ ) स्थिति तनावपूर्ण होने के बाद ही नियन्त्रण में क्यों होती है ? इक्कीसवीं सदी में 'नियन्त्रण' हर जगह 'तनाव' के बाद ही उस तरह क्यों पहुँचता है जैसे सत्तर-अस्सी के दशक में पिक्चर के आखिरी सीन में पुलिस पहुँचती थी ?

-- डॉ. स्कन्द शुक्ल  

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