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उस दिन जाति बदल गई




कांग्रेस पार्टी का वार्षिक अधिवेशन 1916 में लखनऊ में संपन्न हुआ.
अधिवेशन में चंपारण के राजकुमार शुक्ला ने रैयतों कि स्थिति से सम्मलेन को अवगत कराया. उससे सम्बंधित एक प्रस्ताव ब्रजकिशोर प्रसाद ने पेश किया, जो सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया. महात्मा गाँधी में स्थिति जानकर कहा कि पहले मै वहां जाकर परिस्थिति से अवगत होऊंगा उसके बाद कोई कार्यवाही कि जाएगी. अपने वादे के अनुसार गाँधी अप्रैल 1917 में चंपारण पहुंचे. मोतिहारी में उनकी सहायता करने के लिए राजेंद्र प्रसाद, मजरुल हक़, ब्रजकिशोर प्रसाद, शम्भू शरण वर्मा,मि. पोलक एवं अनुग्रह नारायण सिंह भी पहुँच गये.
मोतिहारी में गाँधी एवं उनके सहयोगी गोरख बाबू के मकान में ठहरे. वे अपने सहयोगियों के साथ ज्यादा दिन एक व्यक्ति के यहाँ ठहरना नही चाहते थे, इसलिए एक मकान किराये पर ले लिया गया.
उन लोंगो ने रैयतों का बयान लेना एवं उसे लिखना शुरू किया. काम करने वालों में कई जातियों के लोग थे और खान-पान में छुआ-छूत का भेद भी बहुत जबरदस्त था. नए मकान में उन लोंगो का भोजन बनाने का चौका अलग-अलग था. इससे काम करने वालों का बहुत सा समय भोजन बनाने में व्यतीत हो जाता था. आडंबर के चलते समय कि इस बर्बादी से गाँधी जी बहुत आहत थे.
एक रोज रात के 10 बजे सभी लोग गाँधी जी के पास बैठे थे.तब मौका देखकर उन्होंने बहुत गंभीरता से उन लोंगो के विचारों और कामों कि आलोचना कि. गाँधी ने कहा कि उनके विचार में वर्ण व्यवस्था सही होते हुए भी परिवर्तनशील है. उसमे बराबर परिवर्तन होते रहे है. इस समय जो सेवा कार्य करने आये है उनकी एक ही जाति होनी चाहिए. उन्होंने अनुरोध किया कि छुआछूत के कारण जो समय भोजन बनाने में नष्ट होता है, उसे बचाकर सेवा में लगाना चाहिए. गाँधी जी कि बातोँ का लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा और उस दिन से सभी का चौका एक साथ हो गया.

साभार:- बामेश्वर सिंह 

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