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पित्त और पित्ती




पित्त और पित्ती 
'पित्त' शब्द से मिलता-जुलता एक शब्द हिन्दी में 'पित्ती' भी है।
त्वचा पर उभरने वाले विविध आकार और आकृति के खुजलीदार दानों को कई बार पित्ती कहा जाता है। ये दाने कई बार नन्हें गोलाकार होते हैं , तो कई बार इनके आकार बढ़कर और परस्पर मिलकर बड़े और तरह-तरह के हो जाते हैं। ये कुछ घण्टों तक त्वचा पर उभरे हुए रहते हैं , फिर ग़ायब हो जाते हैं। फिर किसी नये स्थान पर ये दोबारा उभरते हैं। इन दानों की संख्या कुछ से लेकर बहुत ज़्यादा तक हो सकती है।
यकृत-रोगों के तमाम लक्षणों में एक खुजली होना भी है। यह खुजली यकृत के उन रोगों में विशेष रूप से दिखायी देती है , जिनमें पित्त का प्रवाह यकृत से नीचे आँत को रुक जाता है। नतीजन पित्त नीचे नहीं उतर पाता और उसकी बढ़ी मात्रा उलटा ख़ून में पहुँचने लगती है। 
इस पित्त के शरीर के तमाम अंगों में जमा होने से पीलिया का जन्म होता है। यह पीलापन दरअसल पित्त में उपस्थित पित्त-रंजक बिलीरूबिन के कारण होता है। लेकिन इस स्थिति में खुजली भी देखने को मिलती है। ऐसा माना जाता है कि यह खुजली पित्त-लवणों के शरीर में अंगों में जमा होने के कारण होती है।
पित्त-प्रवाह में अवरोध से हुए पीलिया को विज्ञान की भाषा में कोलिस्टैटिक जॉण्डिस कहा गया है। इसी तरह पित्त-लवणों के त्वचा में जमा होने से पैदा हुई खुजली कोलिस्टैटिक प्रूरिटस कहलाती है। प्रूरिटस शब्द अँगरेज़ी में खुजली के लिए चलता है।
इस खुजली के बाद भी यह सत्य है कि यकृत-रोगों में पित्ती अमूमन नहीं देखी जाती , खुजली ही देखी जाती है। सामान्य दिखती त्वचा को खुजलाना-खुजलाते रहना एक बात है और उसपर दानेदार उभर आना दूसरी बात है। लेकिन हिन्दी में इस पित्ती शब्द का पित्त के अलावा और कोई सीधा रिश्तेदार नहीं दिखायी पड़ता।
अँगरेज़ी इस खुजलीदार उभरे त्वचा के दानों को अर्टिकेरिया या हाइव्स कहती है , जिसके होने के कारणों की एक लम्बी सारणी है। उनपर बात फिर कभी हो सकती है।


-- डॉ. स्कन्द शुक्ल 

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