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आओ सिखाएँ तुम्हें अण्डे का फण्डा : भाग 1



आओ सिखाएँ तुम्हें अण्डे का फण्डा : भाग 1

"अण्डे से जीव की उत्पत्ति की बात सदियों से लोगों को पता है।"

यूनिवर्स को हम आज बिग बैंग से पैदा भले मानते हों , लेकिन पुराने लोग किसी स्वर्णिम अण्डे से समस्त सृष्टि का जन्म मानते रहे हैं। यहाँ तक कि बिग बैंग को भी कॉस्मिक एग कह दिया जाता है , भले ही उसमें सामान्य अण्डे-जैसा दिखने में कुछ भी न हो। भारतीय शब्द 'ब्रह्माण्ड = ब्रह्म का अण्ड' इसी सोच के आधार पर गढ़ा गया है।
फिर लेकिन आम आदमी की सोच अण्डे को मुर्गी से जोड़ कर देखती है। बावजूद इस सत्य के कि अण्डे तो हम भी देते हैं। यह अलग बात है कि मानव-अण्ड सुई के सिरे के बराबर आकार का होता है और हर महीने स्त्री-देह में बनता है। निषेचन हुआ तो ठीक , नहीं तो उसे मासिक रक्त-स्राव के साथ बाहर निःसृत कर दिया जाता है। 
अण्डे को समझना सृष्टि को समझना है। जीव के अण्डे से आप उसके विकास के कई रहस्यों के इशारे पा सकते हैं। मनुष्य-जैसे स्तनपाइयों के अलावा पक्षी , सरीसृप , उभयचर और मछलियाँ भी अण्डे देती हैं। लेकिन सारे अण्डे एक-से नहीं हैं। न उनके आकार एक हैं , न रूप-रंग , न आकृति। आदमी ( औरत ) के अण्डे को आप शुतुरमुर्ग के अण्डे के बगल में रख कर कल्पित कीजिए कभी !
मानव-स्त्री का अण्डा अण्डाणु कहलाता है और वह उसकी ( स्त्री की ) आनुवंशिक सामग्री भीतर समेटे है। अगर उसका मिलन किसी शुक्राणु से हुआ , तो एक नये जीव का आरम्भ स्त्री-गर्भ में होने लगेगा। 
अगर मैं आपसे पूछूँ कि स्त्री के अण्डाणु और मुर्गी के अण्डे में आपको कैसी भिन्नताएँ लगती हैं , तो शायद आप आकार के अलावा बाहरी सफ़ेद खोल की बात करें। तमाम जीवों के अण्डे कैल्शियम कार्बोनेट के छिलके से ढँके होते हैं , मानव-अण्डाणु के चारों ओर यह छिलका नहीं होता। 
फिर प्रश्न उठता है कि हमारी स्त्रियों को कैल्शियम कार्बोनेट के इस खोल की आवश्यकता क्यों नहीं है। तो इसके लिए अगला प्रश्न यह पूछिए कि वे कौन-कौन से जीव हैं , जिन्होंने अपने अण्डों के बाहर कैल्शियम या किसी अन्य तत्त्व से बने रसायन का खोल रचा है। साथ ही कैल्शियम कार्बोनेट की रासायनिक प्रकृति की समझ भी कुछ इशारे करती है। 
मछली या मेढक के अण्डे कैल्शियम कार्बोनेट से ढँके नहीं होते। यह कैल्शियम-खोल सबसे पहले आपको सरीसृपों में मिलेगा। साँप-मगरमच्छ-छिपकलियाँ विकासक्रम में पहले जीव हैं , जो अण्डों के बाहर कैल्शियम का खोल रचते हैं। 


मछलियाँ पूर्ण जलचर हैं , मेढक-जैसे उभयचर भी अण्डे पानी में देते हैं। जल में रहने वालों को किसी कड़े खोल की बहुत ज़रूरत नहीं। लेकिन थल में अण्डे देते ही बात बदल जाती है। जलधार में अण्डों की लड़ियाँ इधर-उधर जलमग्न लहराती रहेंगी , लेकिन धरती पर हवा चल रही है --- वह गीले कोमल अण्डे को सुखा कर भीतर पनपते जीव को मार देगी। शुष्कता मृत्युकारिणी है , इसलिए ऐसा एक कवच चाहिए जो हवा का प्रहार नन्हें जीव पर रोके। ऐसे में सृष्टि खोल का खेल रचती है। 
लेकिन फिर कैल्शियम कार्बोनेट ही क्यों ? इस बात का एक महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध वातावरणीय अम्लीयता से है। अम्ल के प्रहार से विकसित होता जीव न मरे , इसलिए एक ऐसा रसायन ज़रूरी था जो ज़रूरत पड़ने पर अम्लों से रासायनिक अभिक्रिया करके उन्हें निष्क्रिय ( उदासीन ) कर सके। ऐसे में कैल्शियम का यह रसायन बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ।
आगे अण्ड-रहस्यों पर बातें चलती रहेंगी ...

--- डॉ. स्कन्द शुक्ल 


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